गौतम बुद्ध के विचार

❖ कोई भी व्यक्ति सिर मुंडवाने से, या फिर उसके परिवार से, या फिर एक जाति में जनम लेने से संत नहीं बन जाता, जिस व्यक्ति में सच्चाई और विवेक होता है, वही धन्य है, वही संत है।

❖ इर्ष्या और नफरत की आग में जलते हुए इस संसार में खुशी और हंसी कैसे स्थाई हो सकती है? अगर आप अँधेरे में डूबे हुए हैं, तो आप रौशनी की तलाश क्यों नहीं करते।

❖ आप अपने गुस्से के लिए दंडित नहीं हुए, आप अपने गुस्से के द्वारा दंडित हुए हो।

❖ अपने तन को स्वस्थ रखना भी एक कर्तव्य है, अन्यथा आप अपनी मन और सोच को अच्छा और साफ नही रख पाएंगे।

❖ ध्यान से ज्ञान प्राप्त होता है, ध्यान की कमी अज्ञानता लाती है, अच्छी तरह जानो क्या तुम्हे आगे ले जाता है और क्या तुम्हे रोके रखता है, और उस मार्ग को चुनो जो बुद्धिमत्ता की और ले जाता हो।

❖ अगर व्यक्ति से कोई गलती हो जाती है, तो कोशिश करें कि उसे दोहराऐं नहीं, उसमें आनंद ढूँढने की कोशिश न करें, क्योंकि बुराई में डूबे रहना, दुःख को न्योता देता है।

❖ क्रोध को पाले रखना खुद ज़हर पीकर दूसरे के मरने की अपेक्षा करने के समान है।

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